ख्वाहिशे आज फिर मुझसे रूठ गई
तनहा रातों में आज फिर आंसु बनकर बह गईकुछ था जो वो मेरे कानों में आकर कह गई
की ये तो वक्त की कुछ साजिशें थी, जिसमें तु फिर से उलझ गईवो क्या रूठी मुझे लगा मेरी जिंदगी ही रूठ गई
पर फिर उस सुलगती शाम में फिर अनगिनत ख्वाहिशें बुन गईजब ख्वाहिशें मुझ से रूठी तो उस से घायल तो जरूर हुई
पर उसी ख्वाहिशों की उम्मीद में फिर से जीना भी सीख गई।
~ Rinku patel
– Hindi Poems
ख्वाहिशों की उम्मीद में फिर से जीना सीख गई - Hindi Poems
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June 05, 2021