RANDOM / BY LABEL (Style 2)

मेरी ख्वाइश कुछ ऐसी हो - Hindi Poems

मैं खुद ही खुद को बयां करती हूं, अजीब सी लड़की हूं जाने क्या-क्या ही चाहती हूं,
छोटी – छोटी आंखों में सपने हजार देख के मुसाफिर बनना चाहती हूं,

है रस्ते अनजान फिर भी बेफ्रिक होकर मंजिल ढूंढना चाहती हूं
खोने का डर नहीं बस सपने पूरा करना चाहतीं हूं

दे साथ गर कोई जिंदगीभर शुक्रगुजार होना चाहती हूं
यूंह तो ख्वाइशें हर दिन बदलती रहती हैं

पर मेरी ख्वाइश कुछ ऐसी हो की बस उसी में खोकर रहना चाहती हूं…
मैं खुद को बस खुद ही से बयान करना चाहती हूं।

~ Dr.Ruchika Mehta

 

– Hindi Poems

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.