उसे जाते हुए देखता हूँ और आवाज़ नहीं करता,
अब मैं किसी को बार-बार नाराज़ नहीं करता।परदा गिरे तो सच से रूबरू होंगे हम,
यूँ तो उन चहरों पर परदा भी नाज़ नहीं करता।तुझे निकालना है तो बेझिझक निकाल दे अपनी महफिल से,
वक्त खराब हो तो कोई अपना भी ऐतराज़ नहीं करता।क़्तल-ए-आफ़्ताब सर-ए-बाज़ार होना कौन सी बड़ी बात है अब,
कमबख्त अँधेरों से अच्छा तो कोई साज़-बाज़ नहीं करता।तेरी फ़रेब-ए-सादगी से तेरे किरदार का पता चलता है,
पीठ में खंजर उतारने की गुस्ताखी कोई जाँबाज़ नहीं करता।~ Shubham Singh
– Sad Shayari
दर्द भरे अलफ़ाज़ | परदा गिरे तो सच से रूबरू होंगे हम - Sad Shayari
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June 05, 2021