जिन आखों से आज आसुओं की बुँदे टपक रही हैं,
कभी उन में से दरिया -ए- नूर बरसा करता था,
ये जो चारों और बंजर सा जमीन देख रहे हो ना
कभी यहां पर भी मुस्कुराहट का सैलाब हुआ करता था
~ Biswajit Rath
– Sad Shayari
आसुओं की बुँदे टपक रही हैं - Sad Shayari
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June 05, 2021